सामुशाह के अत्याचार से परेशान होकर २४ खतो के स्याणाओं व गणमान्य लोगो ने एक गुप्त सभा (खूमडी ) आयोजित की जिसमे चार चोंतरू का गठन हुआ ।
ये चार चोंतरु चार मुख्य गांव से चूने गये थे जिनसे पूरा जोनसार मे आसनी से सम्पर्क बन सकता था ।इन्ही चार गांव के लोगो को हनोल तक पदयात्रा कर श्री महासू देवता को सामुशाह से मुक्ति पाने के लिय मनोनित करना था ।
जब ये चार चोंतरू कई दिनो की मुश्किल यात्रा कर हनोल पहूॅचे तो देवमाली( एक विशेष व्यक्ति जो देवता से संम्पर्क साधने मे सक्षम हो ) ने इनकी अर्जी सुनी । देवमाली श्री महासू देवता से सम्पर्क बनाते हुवे उन्हे चावल के दाने व चाॅद (देवता के कोशागार से सोने चाॅदी या ताॅबे आदि का सिक्का ) देते हूये उन्हे निर्देश दिये कि जाओ थैना गांव मे सरोवर में इस चांद व चावल के दाने डाल कर पूजा करो ओर जब वहाॅ चमत्कार होने आरम्भ हो तो समझना स्वंम श्री महासू देव वहाॅ प्रकट हो गये ।
हनोल से विदा लेकर जब ये चार चोंतरु थैना पहूॅंचे तो उन्होने सबको विधित करते हुये देवमाली व्दारा बताये गये विधि विधान से थैना गाँव मे सरोवर के पास नियमित पूजा करने लगे । कूछ ही दिन के बाद सभी लोग देवमाली व्दारा बताये गये चमत्कारों के साक्षी हुये । उन्होने देखा कि रात मे एक बाघ ओर बकरी पानी पीने जब उस सरोवर के पास पहूचे तो बकरी ने चमत्कारी रूप से बाघ को अपने सिगों से पस्त कर मार गिराया । इस चमत्कार देखने के बाद जब लोग पूजा के लिए प्रात: सरोवर के पास गये तो वे दूसरे अजूबे को देखकर दंग रह गये उन्होने देखा की बहूत सारी चिटियाँ एक भवननुमा बुनियाद की संरचना बनाये हूये थे । इसी संरचना पर श्री महासू देव जी के मन्दिर बनाया गया । मन्दिर पूर्ण होते ही सरोवर के पास नरगिस के फूल खिलने लगे ये फूल कश्मिर हनोल या थैना मे ही पाये जाते है । स्थानिय लोगो की भक्ति से प्रसन्न होकर श्री महासू देव ने सामूशाह के पेट मे चमत्कारी रूप से वृष जमा दिये ।ये वृष बडते बडते वृष की टहनियाँ सामुशाह के नाक मुंह से बाहर निकलने लगा । इस दशा मे सामुशाह का खाना पीना दुबर हो जाता है और वो तडप तडप कर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । तभी से थैना मे श्री महासू देवता की नियमित रूप से पूजा होने लगी ।
प्रारम्भ मे यह मन्दिर देवदार की लकडी व पत्थरो का बनाया गया परन्तु २००१ के आस पास मंन्दिर की पून: निर्माण करवाया गया और ये पवित्र मन्दिर आज भी निर्माणाधिन है ।
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