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 वीर  शहीद  केसरी  चंद

वीर शहीद केसरी चंद

भारत  माँ  की  आजादी  के लिए लाखों देसभक्तो  ने अपने  प्राण  न्योछावर  कर  दिये । इसी  क्रम में नाम  आता  है  जौनसार  बावर  के  वीर  सपूत  केसरी  चंद  का  ।  जिन्होंने  स्वतंत्रता  संग्राम  में आहुति देकर  अपने  साथ साथ जौनसार  बावर  व उत्तराखण्ड  का नाम स्वाधीनता  के इतिहास  में स्वर्णिम  अक्षरो  में अंकित किया  ।
अमर  शहीद  वीर  केसरी  चंद  का  जन्म  १ नवम्बर १९२०  को  जौनसार बावर  के  क्यावा गॉव  में पंडित  शिव  दत्त  के घर  हुवा था  ।  केसरी  की प्रारंभिक  शिक्षा  विकासनगर  में हुई  १९३८  में  डी.ए. वी  देहरादून  से हाई स्कूल  पास कर इंटरमीडिएट  की पढ़ाई  भी जारी रखी । केसरी  बचपन से ही बड़े  साहसी  और निर्भीक  थे  उनकी  विशेष  रूचि  खेल  में होने  के कारण  वे  टोलिनायक  भी होते थे । नेतृत्व  व  देशप्रेम  की भावना  उनमे  कूट - कूट  के थी ।
देश के स्वतंत्रता  आंदोलन  के चलते  व  कांग्रेस  की सभाओ  में भी भाग लेते  थे । इन्टर  की परीक्षा  उत्तीर्ण  किये  बिना वीर केसरी  १० अप्रैल  १९४१  को रॉयल  इंडिया  आर्मी  सर्विस  कार्प  में सूबेदार  के पद  पर भर्ती  हो  गये  थे । दिव्तीय  विश्व  युद्ध  के चलते उन्हें २९ अक्टूबर  १९४१ मालया  मोर्चे  पर तैनात  किया  गया ।
जहाँ उन्हें  जापानी  फौज  द्वारा बंदी बनाया गया ।
नेता  जी सुभाष  चन्द्र  बॉस  के  दिए  गये  नारे " तुम  मुझे  खून  दो  में तुम्हे  आजादी  दूँगा " से प्रभावित  हो कर उन्होंने  आजाद  हिन्द फौज   शामिल  हो गए । उनके  अदम्य  साहस  अद्भुत  पराक्रम  जोखिम  उठाने  की  क्षमता और दृढ संकल्प शक्ति का ज्वार देखकर उन्हें जोखिम बरे कार्ये सौंपे गये । जिनका उन्होंने कुशलता से सम्पादन किया ।
इम्फाल के एक मोर्चे में पूल उड़ाने की कोशिश में ब्रिटिश फौज ने उन्हें पकड़ लिया और बंदी बनाकर दिल्ली की जेल में बज दिया । वंहा ब्रिटिश राज्य और साम्राज्य के खिलाफ षड्यंत्र के अपराध में इन पर मुकदमा चलाया गया और फांसी की सजा सुनाई गयी । मात्र २४ वर्ष ६ माह की अल्प आयु में १९४५ को आततायी ब्रिटिश सरकार के सामने भारत माता की जय और जय हिन्द के नारो का उद्घोष करते हुये केसरी ने फांसी के फन्दे पर झूल गये । वीर शहीद केसरी चंद की सहादत ने न केवल भारत का मन रखा बल्कि जौनसार बावर व उत्तराखण्ड सीना गर्व से चोदा कर दिया । 

वीर शहीद केसरी चंद अमर रहे !

श्री महासू देव का थैना आना व सामुशाह का विनाश की कहानी

सामुशाह के अत्याचार से परेशान होकर २४ खतो के स्याणाओं व गणमान्य लोगो ने एक गुप्त सभा (खूमडी ) आयोजित की जिसमे चार चोंतरू का गठन हुआ ।
ये चार चोंतरु चार मुख्य गांव से चूने गये थे जिनसे पूरा जोनसार मे आसनी से सम्पर्क बन सकता था ।इन्ही चार गांव के लोगो को हनोल तक पदयात्रा कर श्री महासू देवता को सामुशाह से मुक्ति पाने के लिय मनोनित करना था ।
जब ये चार चोंतरू कई दिनो की मुश्किल यात्रा कर हनोल पहूॅचे तो देवमाली( एक विशेष व्यक्ति जो देवता से संम्पर्क साधने मे सक्षम हो ) ने इनकी अर्जी सुनी । देवमाली श्री महासू देवता से सम्पर्क बनाते हुवे उन्हे चावल के दाने व चाॅद (देवता के कोशागार से सोने चाॅदी या ताॅबे आदि का सिक्का ) देते हूये उन्हे निर्देश दिये कि जाओ थैना गांव मे सरोवर में इस चांद व चावल के दाने डाल कर पूजा करो ओर जब वहाॅ चमत्कार होने आरम्भ हो तो समझना स्वंम श्री महासू देव वहाॅ प्रकट हो गये ।
हनोल से विदा लेकर जब ये चार चोंतरु थैना पहूॅंचे तो उन्होने सबको विधित करते हुये देवमाली व्दारा बताये गये विधि विधान से थैना गाँव मे सरोवर के पास नियमित पूजा करने लगे । कूछ ही दिन के बाद सभी लोग देवमाली व्दारा बताये गये चमत्कारों के साक्षी हुये । उन्होने देखा कि रात मे एक बाघ ओर बकरी पानी पीने जब उस सरोवर के पास पहूचे तो बकरी ने चमत्कारी रूप से बाघ को अपने सिगों से पस्त कर मार गिराया । इस चमत्कार देखने के बाद जब लोग पूजा के लिए प्रात: सरोवर के पास गये तो वे दूसरे अजूबे को देखकर दंग रह गये उन्होने देखा की बहूत सारी चिटियाँ एक भवननुमा बुनियाद की संरचना बनाये हूये थे । इसी संरचना पर श्री महासू देव जी के मन्दिर बनाया गया । मन्दिर पूर्ण होते ही सरोवर के पास नरगिस के फूल खिलने लगे ये फूल कश्मिर हनोल या थैना मे ही पाये जाते है । स्थानिय लोगो की भक्ति से प्रसन्न होकर श्री महासू देव ने सामूशाह के पेट मे चमत्कारी रूप से वृष जमा दिये ।ये वृष बडते बडते  वृष की टहनियाँ सामुशाह के नाक मुंह से बाहर निकलने लगा । इस दशा मे सामुशाह का खाना  पीना दुबर हो जाता है और वो तडप तडप कर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । तभी से थैना मे श्री महासू देवता की नियमित रूप से पूजा होने लगी ।
प्रारम्भ मे यह मन्दिर देवदार की लकडी व पत्थरो का बनाया गया  परन्तु २००१ के आस पास मंन्दिर की पून: निर्माण करवाया गया और ये पवित्र मन्दिर आज भी निर्माणाधिन है ।

गढ विराट सामुसाह के अत्याचार की कहानी

गढ विराट सामुसाह के अत्याचार की कहानी

गढ विराढ कालसी विकासखण्ड के अन्तर्गत चकराता मसूरी मोटर मार्ग पर नागथात के समीप एक भू - खण्ड है । जिसे वर्तमान मे विराट खाई से भी जाना जाता है । यहा के ऊॅची चोटी पर राजा विराट का महल व महल के चारो और गढ फैला हुआ था । इस चोटी के चारो और बहूत गहरी खाई है जो इस स्थान को शत्रू  से रक्षा करती थी । इस चोटी पर गढ की यह भी विशेषता थी कि यहाॅ से मीलो दूर तक सहजता से देखा जा सकता था ओर ऊचाई का लाभ से वे दूश्मन को पहले ही पश्त कर देते थे । स्थानिय मान्यता के अनुसार यह स्थल व्दापर युग मे विराट नगर से जाना जाता था और  पाण्डवो ने अपना गुप्त वास यही व्यतीत किया था ।
व्दापर युग अन्त के बाद कलयुग मे आज से लगभग २००० वर्ष पूर्व गढ विराट मे सामुसाह नाम का क्रूर व अत्याचारी राजा का शासन था । यह शासक दुध्द के स्वाद का आदि माना जाता था । अपने इस इच्छापूर्ति के लिए उसने पूरे क्षेत्र की जनता  से दूध्द मागने का आदेश रखा । जो लोग दुध्द लाने मे असमर्थ पाए जाते उन्हे बर्बता से जूल्म ढाये जाते थे । सभी स्थानीय लोग उसके इस क्रूरता पूर्ण आतंक से भयभीत होकर गायो का समस्त दूध्द  सामुशाह को देने लगे । इस कुप्रथा के चलते चलते अन्तत: ऐसी स्थति आ गयी की गाय के बछडे भूख से मरने लगे ।
राजा के सिपाही प्रत्येक दिन दूध्द एकत्र करने आते थे और जो दूध देने मे असर्मथ होता उसे राजा के आदेशानुसार दण्डित करते ।
एक दिन एक परिवार की गाय ने दूध नही दिया । जब राजा के सिपाही दूध लेने आये तो सिपाहियो के डर से उस परिवार की स्त्री ने अपना दूध निकाल कर एक पात्र मे भर दिया । कम दूध देख सिपाहियो ने उससे कारण पुछा तो स्त्री ने डर मे अपनी पूरी व्यथा सुना डाली ।
सिपाही उस स्त्री के दूध को अलग से रख कर राजा के पास के पास ले गये व राजा को पूरी कहानी सुनायी । सब कुछ सुनकर   राजा ने उस दूध को अलग से गर्म करके पीया । उस दूध के स्वाद से राजा प्रसन्न होकर कहने लगा ' यह दूध तो बहूत स्वादिष्ट है मुझे कल से ऐसा ही दूध चाहिये ' । राजा ने दूसरे ही दिन पूरे क्षेत्र मे फरमान जारी कर दिया कि सल से गाय का दूध बन्द कर दिया जाय व क्षेत्र कि समस्त व्याता स्त्रियों का दूध राज महल पहूॅंचाया जाए । जो स्त्री दूध देने से मना करें उन कोडे।बरसाये जाए ।
राजा के इस फरमान ने पुरे क्षेत्र मे डर ओर भी बढ गया व लोग दूखी और लाचार होकर राज हूक्म के नीचे अपार पीडा के सागर मे डूबते गये ।
राजा के हूक्म से सभी व्याता स्त्रियो के स्तनो को चमडे की पेटी से ताला लगाकर बन्द कर दिया ।अब रोज प्रात:काल सिपाही ताला खोलकर  दुध ले जाने लगे । किसी स्त्री के मना करने पर उसे कोडो की सजा से प्रताडित किया जाता । इस तरह इस आंतक व क्रुरता का ताण्डव पुरे क्षेत्र पर प्रभाहित होने लगा ।माॅ का दूध न मिलने से नवजात शिशु भुखे मरने लगे पुरे क्षेत्र मे दुख से त्राही त्राही होने लगी । लोग इस अत्याचार से मुक्त होने की बहुत योजना बनाते लेकिन सामुशाह के क्रूरता के आगे सब विफल रहती ।
अन्त मे  श्री महासू देवता ने इस राक्षस का वध कर स्थानीय को भय मुक्त किया ।

आक्रमण बचाव विधी मे सक्षम था जौनसार

आक्रमण बचाव विधी मे सक्षम था जौनसार

इतिहास के हर पृष्ट पर छल कपट व आतंकित करने वाली घटनाओं की भू आती है । वही अगर हम जौनसार के इतिहास को देखे तो इसकी मौजूदा धरातल पर अंकित कुछ खण्ड चुप्पी साधे हुये सब कुछ बिन बोले  इसका इतिहास बंया कर देते है ।
वैसे आज कल कोई ऐसा लिखित  तत्य नही है जिसके आधार पर हम जौनसार - बावर का वर्णन कर सके बस अब तो इसे दन्त कथाओं मे ही सुना जा सकता है ।
गढ बैराट का भव्य किला अब बिरान बंजर भुमी मे तबदिल हो गया और लाखामंडल की असिम कलाकृतिया फिर भी शोध के लिए एक विषय
मात्र बना हुआ है ।
शिक्षा व रोजगार के लिये पलायन ने इस क्षेत्र कि बहु विकसित सम्पन विरासती संस्कृति को लुप्त करने के लिये कोई कसर नही छोडी परन्तु फिर भी यह क्षेत्र अपनी अमिट संस्कृति को संजोय हुये है ।
गोरखो की गोरख्याती व अंग्रेजो की फिरंगाती मे हिचकोले खाता यह क्षेत्र फिर भी उतना ही सक्षम है । 
आजादी से कई दसक पुर्व यह क्षेत्र बहुत सम्पन माना जाता था । तभी इस क्षेत्र को गोरखो के क्रूर आक्रमण (जिसे स्थानीय लोग गोरख्यात कहते थे ) का सामना करना पडता था ।
इन आक्रमणो से बचने के लिय लोग ढोबडी (तहखाना ) का उपयोग करते थे जो कि आज कल भी देखे जा सकते हैं ।
शत्रू से निपटने के लिए कइ तकनिको का प्रचलन इस क्षेत्र मे था परन्तु अगर शत्रू सीधा ही घर मे प्रवेश करे तो कम ऊचाई के दरवाजे उन्हे पस्त करने मे कारगर सिध्द होते थे ।
औजारो  मे ये तलवार  कूल्हाडी परसा  व धनुष कमान का उपयोग निपुणता से करते थे ।

किरिमिरि  राक्षस  का  मेंदर्थ  में  कहर की कहानी

किरिमिरि राक्षस का मेंदर्थ में कहर की कहानी

किरिमिरि  राक्षस  का  मेंदर्थ  में  कहर की कहानी   हिंदी  में 
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किरिमिरि नामक एक शक्तिशाली राक्षस अपने भोजन के लिए इंसानों व  जानवरों का उपभोग करताथा । जो लोग मैंद्रथ  में रहते थे,वे उसके आतंक से बहूत आतंकित थे । जो भी जीवित उसकी पहूॅंच मे आता था , वह उसकी हत्या कर  उसे खा  जाता था । निकटवर्ती ग्रामीणों उसके आतंक व कार्यों से चिंतित थे , इसलिए सभी ग्रामीणों ने उसके खाने के लिए उसे पर्याप्त भोजन के साथ प्रतिदिन उसे एक बकरी प्रदान करने का किरी मिरी  से एक समझौता करके राजी  कर दिया गया। इसके अलावा वे किरमिरि  के आहार समझौते में सप्ताह में एक बार एक मानव मांस की बलि 'भी  दी  जाने  की बात   भी रखी  गयी थी  । किरमिरि  खुशी से  इस पर सहमत हो  गया । ग्रामीणों को एक-एक करके प्रत्येक परिवार समझौते की मांगों को पूरा करने के लिए जिम्मेदारी कि योजना बनाई  थी । तदनुसार, हर हफ्ते एक जिम्मेदार परिवार के एक सदस्य का बलिदान करना पडता था । शैतान को खिलाने के लिए  जिम्मेदार एक परिवार,  को  महान दुःख का  सामना करना  पड़ता  था । यह परंपरा वर्षों तक  जारी  रही ।इस परंपरा के चलते  धीरे-धीरे गांव की आबादी में कमी आई।  इसी गांव में  'हुना  बाट' नाम के एक संत भी रहते  थे । उसकी पत्नी का नाम 'कलावती' था। युगल  के  छह में से सात बच्चों को किरमिरि  के आहार के रूप में बलिदान कर दिया   था। ,  सिर्फ एक छोटा बच्चा ,   शेष  था। अगले महीने शैतान को बली की उनके परिवार की बारी थी  जैसा की निर्धारित किया गया था।  शैतान को खिलाने के लिए बलिदान किसका होगा,  इस विषय पर रात को  बिस्तर पर जाने से  पहले  जब संत सोच रहा था?  तो उसके मन मे विडंबना थी की यदि  वह खुद को बलिदान करे  तो  उसके  परिवार का ख्याल कोंन  रखेगा   बच्चा अभी  मासूम था। वह अपनी पत्नी का त्याग करता   तो उसके वंश ही  समाप्त हो  जाता । युगल अचानक इस पर सोच में  रहा था, कि  कलावती "अरे महासू" चिल्लायी और वह बेहोश हो गयी । उसे बेहोशी की हालत में  एक चमकती भड़कती रोशनी का  एहसास होता है और उसे एक सपना सा आता है जिसमे 'महासू देवता' उसे दर्शन दिये महासु देवता ने अपना पता  कश्मीर बताते हुये  देवता ने  सपने   मे  कहा, "मेरे पास  अपने पति को भेजो  और हम उस शैतान को मारने के लिए आ जायेंगे  "ऐसा बोलते ही बिजली की  चमक जिसके माध्यम  से ये उसे महासू देवता से संम्पर्क हो रहा था  अचानक  बिजली चमक गायब हो गयी और कलावती सपने से उटी । उसने  हुना  बाट को उसके सपने के बारे में बताया और हूणा को कश्मीर जाने के लिए  आग्रह करने लगी  । हुना  बाट  ने  पहले से ही अपने पूर्वजों से कश्मीर में महासू देवता के बारे में सुना था , तो उसने   कलावती   बात  मान  ली  और मौत के डर से वह अपनी पत्नी के अनुरोध पर हुना  बाट  ने  कश्मीर का दौरा करने का फैसला किया।
बिरसू भंडारी पर विपत्ति व दैवीय चमत्कार

बिरसू भंडारी पर विपत्ति व दैवीय चमत्कार

बिरसू भंडारी पर विपत्ति व दैवीय चमत्कार
प्रिय पाठको आज महासु देवता की कहानी का एक अंश याद आया जो की अमीट है । अगर आप ने कभी जौनसारी या वावरी गीतो को सुना हो तो कभी बिरसू भंडारी की हारूल का वखान होते आपने सुना होगा ।आज उन्ही भडारी की कहानी व कूछ रोचक तत्यो की जानकारी सग्रहीत करके मेने इस साइट पर प्रकाशित की है ।
एक बार बिरसू भंडारी बरसात के मौसम में देवता का अनाज या फसलाना  लेने के लिये भरमखत जा रहे थे । उनके कन्धे पर चॉंदी के सिक्को से जडा   डोरीया (पाथानुमा बर्तन जो काठ की लकडी से बना होता है)  था । लगातार हो रही घनघोर वर्षा भिरसू को आगे बढने में बाधा उत्तपन्न कर री थी ऐसे मे भिरसू बीना बारीस की परवाह कीये अपनी मंजिल को चल पडा ।जैसै ही वह टौंस नदी के पास संगोटा नामक स्थान पर लकडी के पुल पर पहूॅचे अचानक पुल नदी के तेज बहाव के कारण टूट गया और भंडारी जी डोरीये सहित टौंस  के  तेज प्रवाह में जा गिरे । टौंस के तेज प्रवाह का सामना करना उनके लिये असंभव था परन्तू वह अपने साहस से धारा मे बहते बहते आस पास के लोगो से सहायता के लिये  पुकार लगा रहे थे ।  आवाज सुनकर स्थानिय लोग सहायता के लिये आगे बडे कंई बार प्रयतं करने के बाद भी बिरसू को बचाना असंभव सा लग रा था । अब तो बिरसू स्वयं भी बहूत भयभीत ओर थक गया था अचानक एक चम्तकार के साथ भंडारी डोरीये के बल धारा के साथ न बह कर ऊपर तैरने लगे । स्थानिय लोगो ने उन्हे रस्सी के माध्यम से  जल्दी बाहर निकाला । जान बचाने कि हडकंप मे किसी ने भी उस पावन पाथे कि ओर ध्यान नही दिया । पाथा धारा के वेग टौंस नदी के मुहाने यमुना नदी मे प्रवाहित हो गया ।

यमुना नदी मे बहते हुये यह डोरीया दिल्ली मे किसी मछुवारे के जाल मे जा फसा । मछुवारे न जब जाल बाहर निकाला तो वह विशिष्ट पाथे को देखकर अस्मजस मे पड गया । उसने चाॅदी के सिक्को से जडा ऐसा विशिष्ट बर्तन पहले कभी नही देखा था ।
मछूवारे ने बहूत सोच विचार के बाद पाथे को घर ले जाने का निश्चिय किया । परन्तू पहेली रात से ही उसके घर मे रात को अप्राकृतिक आवजे  सुनायी देने लगी  । मछुवारा घट रहे घटनाक्रम से डर गया  ओर उसने पात्र को बेचने का निश्चिय किया । उसने बेचते हुवे साहुकार को पुरा व्रतांत सुनाते हुये कहा की ये कोई  मामूली पात्र नही है परन्तू किसी देवता का पात्र ज्ञात पडता है । साहुकार ने मछुवारे  की बातो पर  विश्वास करते पाथा अपने घर मे पूजन के स्थल पर रख कर उसकी नियमित रूप से पुजा करता है । बहूत दिन व्यतीत होने के उपरान्त महासू देव उस साहूकार को स्वप्न मे दर्शन देते है और साहूकार को अपने स्वरूप से परीचित कराते हूये पाथे को लोटाने का आदेश करते है । 
अगली सुबह होते ही साहु कार रात आये स्वप्न पर श्रध्धा रखते हये स्वपन कथित स्थान हनोल  कि ओर पाथे को नमक से पुर्ण रूप से भरकर प्रस्थान किया और तब से अब तक भाद्रपद मे तीज व गणेश चतुर्थी के दिन  देवता के लिये दिल्ली से नमक आने कि प्रथा कायम है । वंही दुसरी ओर बिरसु भडारी पर आयी विपत्ति के पौराणिक गीत आज भी जौनसार वावर के  लोगो जुवा पर सुने जा सकते है।


Terror of KIRMIRI Monster in ‘Mandrath’

Terror of KIRMIRI Monster in ‘Mandrath’




There was a powerful monster named Kirmiri lived in Mandrath, who used to consume humans & animals for his meal. If any living being came under his surveillance, he ate it after killing. Nearby villagers were worried by his actions, so all villagers settled an agreement with Kirmiri that they will provide him a goat daily with enough food to eat. Also they added a human flesh once a week in Kirmiri’s diet agreement. Kirmiri got agreed happily. Villagers planned that one by one each family is responsible to meet the agreement’s demands. Accordingly, every week a member of the responsible family gets sacrificed. A family, who is responsible for feeding the devil, struck with great sorrow. This tradition kept on going for years. Gradually the population of the village declined. There was also a saint named ‘Huna Bhaat’ lived in the village. His wife’s name was ‘Kalavati’. The couple had seven children out of them six got sacrificed as Kirmiri’s diet. The one child, who was left, was just a small kid. The couple was old. Next month their family’s turn was scheduled to feed the devil. So the saint was thinking while going to bed at night that, whom he would sacrifice to feed the devil? If he sacrifices himself then who will take care of his family?  The child was innocent kid. If he would sacrifice his wife then his lineage will come to the end. The couple was thinking over it suddenly, Kalavati screamed “Hey Masu” and she went unconscious. In her unconsciousness she realized a Lightening flare and she started dreaming. She dreamt that ‘Mahasu deity’ lived in Kashmir. He was telling her via lightening flare that “send your husband to me and we will come to kill that devil”. Then that lightening flare disappeared and Kalavati woke up. She told about her dream to Huna Bhaat and urges him to go to Kashmir. Huna Bhaat already heard about Mahasu deity in Kashmir from his ancestors, so he believed Kalavati. On his wife’s request and under the fear of death Huna Bhaat decided to visit Kashmir.                            
Incarnation of four veera's

Incarnation of four veera's

When kartikay cut his whole body into four part .The drops of blood form in many veera's
as - Sekudiya (sukraad), Rang veer,Kaylu veer, Jang veer,Uday veer,Vaital veer,
 Kapila veer ,Angaru veer.
In which sukraad , rangveer ,kaylu, kapila veer always live with lord mahasu and
worshiped.
It is necessary to situated four veera's statue with mahasu temple.
Incarnation of lord mahasu

Incarnation of lord mahasu

According to Hinduism there are 33 million  Devtas are described in vedas and sastra.
Mahasu Devtas is one of them and worshiped in jaunsar bawar region .There is not any kind of written evidence and history about incarnation of  mahasu devta.
the story goes to three thousand year ago before Pandav period in dawapar yugas at that time  in Kuru Kashmir (presently in Pakistan) near a Sundarsarover  (sunder pound) VimalDev ruled this area with his wife Devladi Mai. they both are ascetic and saintlike .they both have supernatural power.
there is another story behind the incarnation of vimal dev and his other brother
""Ganesh and his sibling Karthik quarreled among themselves about who is stronger
and mightier of the two.They agreed who ever travels around the world and returns
 first will be considered to be the mightier than the other.
Karthik started his journey on vehicle- the peacock which started to move swiftly.
Ganesh set out on his journey on his vehicle –the mouse.

 While Karthik moved swiftly Ganesh could move very slowly.
Seeing this Ganesh stopped and thought ,”I will surely lose the game if this continues.
 I have to think of another plan.”
 After much thought he came to a conclusion and turned back.


He went to back to their home,
 the abode of snow, the Himalayas where Shiva and Parvati- his parents lived.
 He went to them bowed before them and requested them to sit nearby.
They were surprised but agreed and sat on a hill close to each other.
 He then bowed them and revolved around them 3 times and sat near by.
 When his parents inquired what he is up to do he asked them to wait for sometime.
 Soon Karthik came there panting, but with a victorious smile. He beamed and said,
 “I have won. I have traveled around the world and returned while you are still here.”
Ganesh was still smiling and replied, “Let us leave the decision to our parents.”
He then turned to their parents bowed before them and said,
“Please settle the dispute between us.
 We agreed that whoever travels around the world and returns first will be considered
as powerful as and mightier than the other. Karthik traveled the whole world and is
 returning now. But I revolved around both of you three times and am sitting here for
Past some moment . Now tell us who is mightier?”
Both Shiva and Karthik smiled and turned to Karthik and said, “Dear son, your elder brother is right.
 Revolving around the parents 3 times is equal to traveling around the world once.As this is
 the accepted truth he wins the deal.”""
After this incident  kartikay is very angry and  depressed and comes near the sunder pound  in kashmir and divided whole body in four part  .from these four part four devtas is incarnated vimal dev is one of them
and other is Vashuki dev ,Ullal dev,Bhadvana dev other three deities  goes to Patal loka but vimal dev is decided to live on earth with his wife devladi mai..just because they ruled in kuru kashmir they are called by name of "kudiya kashmiriya".
After few year they have four children 1)Vasik dev  2)Mahasu dev  3) Pavasik dev  4) chalda dev
.Because of origin of incarnation of their ancestry is maash(part of body) they are called char mahasu .

All the for brother are ascetic and have different type of supernatural power.The many legend tell that  the incarnation of lord mahasu is before the pandavas
period because when duryodhan decided to live near  uttakashi purola .He prayed to
 lord mahasu to owe this land .