गढ विराढ कालसी विकासखण्ड के अन्तर्गत चकराता मसूरी मोटर मार्ग पर नागथात के समीप एक भू - खण्ड है । जिसे वर्तमान मे विराट खाई से भी जाना जाता है । यहा के ऊॅची चोटी पर राजा विराट का महल व महल के चारो और गढ फैला हुआ था । इस चोटी के चारो और बहूत गहरी खाई है जो इस स्थान को शत्रू से रक्षा करती थी । इस चोटी पर गढ की यह भी विशेषता थी कि यहाॅ से मीलो दूर तक सहजता से देखा जा सकता था ओर ऊचाई का लाभ से वे दूश्मन को पहले ही पश्त कर देते थे । स्थानिय मान्यता के अनुसार यह स्थल व्दापर युग मे विराट नगर से जाना जाता था और पाण्डवो ने अपना गुप्त वास यही व्यतीत किया था ।
व्दापर युग अन्त के बाद कलयुग मे आज से लगभग २००० वर्ष पूर्व गढ विराट मे सामुसाह नाम का क्रूर व अत्याचारी राजा का शासन था । यह शासक दुध्द के स्वाद का आदि माना जाता था । अपने इस इच्छापूर्ति के लिए उसने पूरे क्षेत्र की जनता से दूध्द मागने का आदेश रखा । जो लोग दुध्द लाने मे असमर्थ पाए जाते उन्हे बर्बता से जूल्म ढाये जाते थे । सभी स्थानीय लोग उसके इस क्रूरता पूर्ण आतंक से भयभीत होकर गायो का समस्त दूध्द सामुशाह को देने लगे । इस कुप्रथा के चलते चलते अन्तत: ऐसी स्थति आ गयी की गाय के बछडे भूख से मरने लगे ।
राजा के सिपाही प्रत्येक दिन दूध्द एकत्र करने आते थे और जो दूध देने मे असर्मथ होता उसे राजा के आदेशानुसार दण्डित करते ।
एक दिन एक परिवार की गाय ने दूध नही दिया । जब राजा के सिपाही दूध लेने आये तो सिपाहियो के डर से उस परिवार की स्त्री ने अपना दूध निकाल कर एक पात्र मे भर दिया । कम दूध देख सिपाहियो ने उससे कारण पुछा तो स्त्री ने डर मे अपनी पूरी व्यथा सुना डाली ।
सिपाही उस स्त्री के दूध को अलग से रख कर राजा के पास के पास ले गये व राजा को पूरी कहानी सुनायी । सब कुछ सुनकर राजा ने उस दूध को अलग से गर्म करके पीया । उस दूध के स्वाद से राजा प्रसन्न होकर कहने लगा ' यह दूध तो बहूत स्वादिष्ट है मुझे कल से ऐसा ही दूध चाहिये ' । राजा ने दूसरे ही दिन पूरे क्षेत्र मे फरमान जारी कर दिया कि सल से गाय का दूध बन्द कर दिया जाय व क्षेत्र कि समस्त व्याता स्त्रियों का दूध राज महल पहूॅंचाया जाए । जो स्त्री दूध देने से मना करें उन कोडे।बरसाये जाए ।
राजा के इस फरमान ने पुरे क्षेत्र मे डर ओर भी बढ गया व लोग दूखी और लाचार होकर राज हूक्म के नीचे अपार पीडा के सागर मे डूबते गये ।
राजा के हूक्म से सभी व्याता स्त्रियो के स्तनो को चमडे की पेटी से ताला लगाकर बन्द कर दिया ।अब रोज प्रात:काल सिपाही ताला खोलकर दुध ले जाने लगे । किसी स्त्री के मना करने पर उसे कोडो की सजा से प्रताडित किया जाता । इस तरह इस आंतक व क्रुरता का ताण्डव पुरे क्षेत्र पर प्रभाहित होने लगा ।माॅ का दूध न मिलने से नवजात शिशु भुखे मरने लगे पुरे क्षेत्र मे दुख से त्राही त्राही होने लगी । लोग इस अत्याचार से मुक्त होने की बहुत योजना बनाते लेकिन सामुशाह के क्रूरता के आगे सब विफल रहती ।
अन्त मे श्री महासू देवता ने इस राक्षस का वध कर स्थानीय को भय मुक्त किया ।
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