इतिहास के हर पृष्ट पर छल कपट व आतंकित करने वाली घटनाओं की भू आती है । वही अगर हम जौनसार के इतिहास को देखे तो इसकी मौजूदा धरातल पर अंकित कुछ खण्ड चुप्पी साधे हुये सब कुछ बिन बोले इसका इतिहास बंया कर देते है ।
वैसे आज कल कोई ऐसा लिखित तत्य नही है जिसके आधार पर हम जौनसार - बावर का वर्णन कर सके बस अब तो इसे दन्त कथाओं मे ही सुना जा सकता है ।
गढ बैराट का भव्य किला अब बिरान बंजर भुमी मे तबदिल हो गया और लाखामंडल की असिम कलाकृतिया फिर भी शोध के लिए एक विषय
मात्र बना हुआ है ।
शिक्षा व रोजगार के लिये पलायन ने इस क्षेत्र कि बहु विकसित सम्पन विरासती संस्कृति को लुप्त करने के लिये कोई कसर नही छोडी परन्तु फिर भी यह क्षेत्र अपनी अमिट संस्कृति को संजोय हुये है ।
गोरखो की गोरख्याती व अंग्रेजो की फिरंगाती मे हिचकोले खाता यह क्षेत्र फिर भी उतना ही सक्षम है ।
आजादी से कई दसक पुर्व यह क्षेत्र बहुत सम्पन माना जाता था । तभी इस क्षेत्र को गोरखो के क्रूर आक्रमण (जिसे स्थानीय लोग गोरख्यात कहते थे ) का सामना करना पडता था ।
इन आक्रमणो से बचने के लिय लोग ढोबडी (तहखाना ) का उपयोग करते थे जो कि आज कल भी देखे जा सकते हैं ।
शत्रू से निपटने के लिए कइ तकनिको का प्रचलन इस क्षेत्र मे था परन्तु अगर शत्रू सीधा ही घर मे प्रवेश करे तो कम ऊचाई के दरवाजे उन्हे पस्त करने मे कारगर सिध्द होते थे ।
औजारो मे ये तलवार कूल्हाडी परसा व धनुष कमान का उपयोग निपुणता से करते थे ।
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