बिरसू भंडारी पर विपत्ति व दैवीय चमत्कार

बिरसू भंडारी पर विपत्ति व दैवीय चमत्कार
प्रिय पाठको आज महासु देवता की कहानी का एक अंश याद आया जो की अमीट है । अगर आप ने कभी जौनसारी या वावरी गीतो को सुना हो तो कभी बिरसू भंडारी की हारूल का वखान होते आपने सुना होगा ।आज उन्ही भडारी की कहानी व कूछ रोचक तत्यो की जानकारी सग्रहीत करके मेने इस साइट पर प्रकाशित की है ।
एक बार बिरसू भंडारी बरसात के मौसम में देवता का अनाज या फसलाना  लेने के लिये भरमखत जा रहे थे । उनके कन्धे पर चॉंदी के सिक्को से जडा   डोरीया (पाथानुमा बर्तन जो काठ की लकडी से बना होता है)  था । लगातार हो रही घनघोर वर्षा भिरसू को आगे बढने में बाधा उत्तपन्न कर री थी ऐसे मे भिरसू बीना बारीस की परवाह कीये अपनी मंजिल को चल पडा ।जैसै ही वह टौंस नदी के पास संगोटा नामक स्थान पर लकडी के पुल पर पहूॅचे अचानक पुल नदी के तेज बहाव के कारण टूट गया और भंडारी जी डोरीये सहित टौंस  के  तेज प्रवाह में जा गिरे । टौंस के तेज प्रवाह का सामना करना उनके लिये असंभव था परन्तू वह अपने साहस से धारा मे बहते बहते आस पास के लोगो से सहायता के लिये  पुकार लगा रहे थे ।  आवाज सुनकर स्थानिय लोग सहायता के लिये आगे बडे कंई बार प्रयतं करने के बाद भी बिरसू को बचाना असंभव सा लग रा था । अब तो बिरसू स्वयं भी बहूत भयभीत ओर थक गया था अचानक एक चम्तकार के साथ भंडारी डोरीये के बल धारा के साथ न बह कर ऊपर तैरने लगे । स्थानिय लोगो ने उन्हे रस्सी के माध्यम से  जल्दी बाहर निकाला । जान बचाने कि हडकंप मे किसी ने भी उस पावन पाथे कि ओर ध्यान नही दिया । पाथा धारा के वेग टौंस नदी के मुहाने यमुना नदी मे प्रवाहित हो गया ।

यमुना नदी मे बहते हुये यह डोरीया दिल्ली मे किसी मछुवारे के जाल मे जा फसा । मछुवारे न जब जाल बाहर निकाला तो वह विशिष्ट पाथे को देखकर अस्मजस मे पड गया । उसने चाॅदी के सिक्को से जडा ऐसा विशिष्ट बर्तन पहले कभी नही देखा था ।
मछूवारे ने बहूत सोच विचार के बाद पाथे को घर ले जाने का निश्चिय किया । परन्तू पहेली रात से ही उसके घर मे रात को अप्राकृतिक आवजे  सुनायी देने लगी  । मछुवारा घट रहे घटनाक्रम से डर गया  ओर उसने पात्र को बेचने का निश्चिय किया । उसने बेचते हुवे साहुकार को पुरा व्रतांत सुनाते हुये कहा की ये कोई  मामूली पात्र नही है परन्तू किसी देवता का पात्र ज्ञात पडता है । साहुकार ने मछुवारे  की बातो पर  विश्वास करते पाथा अपने घर मे पूजन के स्थल पर रख कर उसकी नियमित रूप से पुजा करता है । बहूत दिन व्यतीत होने के उपरान्त महासू देव उस साहूकार को स्वप्न मे दर्शन देते है और साहूकार को अपने स्वरूप से परीचित कराते हूये पाथे को लोटाने का आदेश करते है । 
अगली सुबह होते ही साहु कार रात आये स्वप्न पर श्रध्धा रखते हये स्वपन कथित स्थान हनोल  कि ओर पाथे को नमक से पुर्ण रूप से भरकर प्रस्थान किया और तब से अब तक भाद्रपद मे तीज व गणेश चतुर्थी के दिन  देवता के लिये दिल्ली से नमक आने कि प्रथा कायम है । वंही दुसरी ओर बिरसु भडारी पर आयी विपत्ति के पौराणिक गीत आज भी जौनसार वावर के  लोगो जुवा पर सुने जा सकते है।


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