भारत माँ की आजादी के लिए लाखों देसभक्तो ने अपने प्राण न्योछावर कर दिये । इसी क्रम में नाम आता है जौनसार बावर के वीर सपूत केसरी चंद का । जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में आहुति देकर अपने साथ साथ जौनसार बावर व उत्तराखण्ड का नाम स्वाधीनता के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरो में अंकित किया ।
अमर शहीद वीर केसरी चंद का जन्म १ नवम्बर १९२० को जौनसार बावर के क्यावा गॉव में पंडित शिव दत्त के घर हुवा था । केसरी की प्रारंभिक शिक्षा विकासनगर में हुई १९३८ में डी.ए. वी देहरादून से हाई स्कूल पास कर इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी जारी रखी । केसरी बचपन से ही बड़े साहसी और निर्भीक थे उनकी विशेष रूचि खेल में होने के कारण वे टोलिनायक भी होते थे । नेतृत्व व देशप्रेम की भावना उनमे कूट - कूट के थी ।
देश के स्वतंत्रता आंदोलन के चलते व कांग्रेस की सभाओ में भी भाग लेते थे । इन्टर की परीक्षा उत्तीर्ण किये बिना वीर केसरी १० अप्रैल १९४१ को रॉयल इंडिया आर्मी सर्विस कार्प में सूबेदार के पद पर भर्ती हो गये थे । दिव्तीय विश्व युद्ध के चलते उन्हें २९ अक्टूबर १९४१ मालया मोर्चे पर तैनात किया गया ।
जहाँ उन्हें जापानी फौज द्वारा बंदी बनाया गया ।
नेता जी सुभाष चन्द्र बॉस के दिए गये नारे " तुम मुझे खून दो में तुम्हे आजादी दूँगा " से प्रभावित हो कर उन्होंने आजाद हिन्द फौज शामिल हो गए । उनके अदम्य साहस अद्भुत पराक्रम जोखिम उठाने की क्षमता और दृढ संकल्प शक्ति का ज्वार देखकर उन्हें जोखिम बरे कार्ये सौंपे गये । जिनका उन्होंने कुशलता से सम्पादन किया ।
इम्फाल के एक मोर्चे में पूल उड़ाने की कोशिश में ब्रिटिश फौज ने उन्हें पकड़ लिया और बंदी बनाकर दिल्ली की जेल में बज दिया । वंहा ब्रिटिश राज्य और साम्राज्य के खिलाफ षड्यंत्र के अपराध में इन पर मुकदमा चलाया गया और फांसी की सजा सुनाई गयी । मात्र २४ वर्ष ६ माह की अल्प आयु में १९४५ को आततायी ब्रिटिश सरकार के सामने भारत माता की जय और जय हिन्द के नारो का उद्घोष करते हुये केसरी ने फांसी के फन्दे पर झूल गये । वीर शहीद केसरी चंद की सहादत ने न केवल भारत का मन रखा बल्कि जौनसार बावर व उत्तराखण्ड सीना गर्व से चोदा कर दिया ।
अमर शहीद वीर केसरी चंद का जन्म १ नवम्बर १९२० को जौनसार बावर के क्यावा गॉव में पंडित शिव दत्त के घर हुवा था । केसरी की प्रारंभिक शिक्षा विकासनगर में हुई १९३८ में डी.ए. वी देहरादून से हाई स्कूल पास कर इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी जारी रखी । केसरी बचपन से ही बड़े साहसी और निर्भीक थे उनकी विशेष रूचि खेल में होने के कारण वे टोलिनायक भी होते थे । नेतृत्व व देशप्रेम की भावना उनमे कूट - कूट के थी ।
देश के स्वतंत्रता आंदोलन के चलते व कांग्रेस की सभाओ में भी भाग लेते थे । इन्टर की परीक्षा उत्तीर्ण किये बिना वीर केसरी १० अप्रैल १९४१ को रॉयल इंडिया आर्मी सर्विस कार्प में सूबेदार के पद पर भर्ती हो गये थे । दिव्तीय विश्व युद्ध के चलते उन्हें २९ अक्टूबर १९४१ मालया मोर्चे पर तैनात किया गया ।
जहाँ उन्हें जापानी फौज द्वारा बंदी बनाया गया ।
नेता जी सुभाष चन्द्र बॉस के दिए गये नारे " तुम मुझे खून दो में तुम्हे आजादी दूँगा " से प्रभावित हो कर उन्होंने आजाद हिन्द फौज शामिल हो गए । उनके अदम्य साहस अद्भुत पराक्रम जोखिम उठाने की क्षमता और दृढ संकल्प शक्ति का ज्वार देखकर उन्हें जोखिम बरे कार्ये सौंपे गये । जिनका उन्होंने कुशलता से सम्पादन किया ।
इम्फाल के एक मोर्चे में पूल उड़ाने की कोशिश में ब्रिटिश फौज ने उन्हें पकड़ लिया और बंदी बनाकर दिल्ली की जेल में बज दिया । वंहा ब्रिटिश राज्य और साम्राज्य के खिलाफ षड्यंत्र के अपराध में इन पर मुकदमा चलाया गया और फांसी की सजा सुनाई गयी । मात्र २४ वर्ष ६ माह की अल्प आयु में १९४५ को आततायी ब्रिटिश सरकार के सामने भारत माता की जय और जय हिन्द के नारो का उद्घोष करते हुये केसरी ने फांसी के फन्दे पर झूल गये । वीर शहीद केसरी चंद की सहादत ने न केवल भारत का मन रखा बल्कि जौनसार बावर व उत्तराखण्ड सीना गर्व से चोदा कर दिया ।