आई गौवो बिस्सू - एक पर्व या चिडीया का राग

सुबह होते ही एक मधूर सी चिडीया की आवाज  जब कानो मे पडती है तो मन जट से रोमाचित हो उटता है । उटते ही जब शीतल हिमालय के हवा के झोंके जब तन से टकराते है तो  मन और भी प्रफूल्लित हो जाता है । इस तरो ताजे वातावरण का समा वयां करना मेरे वश से बाहर है ।  परन्तु एक  आवाज जो अब  भी कानो मे गॅूज रही है वो है "आई गौवो बिस्सू " वास्तव मे क्या मधुर आवाज है जो एक पंछी बार - बार  गाता ही चला जाता है ।
यह पंछी बडे शिद्दत से यह राग लोगो के कानो तक पहूॅचाती है और उन्हे आने वाले बिस्सू पर्व के संकेत दे जाती है । यह बात बहूत ही रोचक की बिस्सू के दिन के बाद उस पंछी की आवाज कहीं सूनायी नहीं देती । उत्सुकता से भरे इस राग गायनी पंछी की दंत कथा कुछ अजीब है परन्तु यह जौनसार - वावर के लिए किसी वरदान से कम नही जो हमे पल पल यही संदेश देता है कि एक असहाय पंछी भी अपने मूल्क की पंरपरागत संस्कृति व प्रकृति को कभी नही बूलता और वह पंछी होते हूवे भी इसे संजोय रखने मे पल पल अग्रसर है तो कुछ दायित्व तो संसार के श्रेष्ट प्राणी भी बनता है ।

"सभी क्षेत्रवासीयों को बिस्सू की हार्दिक सुभकामनाये ।"

Share this

Related Posts

Previous
Next Post »