जौनसार बावर में आने वाली संक्रांत में मनाये जाने वाला त्यौहार बिस्सु की तैयारी जोरो पर है। जानिए क्या है विस्सू और गनियात -
बिस्सु या गनियात : यह' एक वसंत उत्सव है जो की अप्रैल महीने मे बैशाख की संक्रांति के दिन मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर ये संक्रांत के एक दो दिन बाद भी मनाया जाता है। ये त्यौहार भी और त्योहारो की तरह तीन या पांच दिवसीय होता है। यह त्यौहार लोगो में आगामी फसल कटाई तैयार करता है और उनमे जोश, ऊर्जा और शक्ति बहाल करता है। यह पर्व बर्फ से आच्छादित सफेद पृष्टभूमि पर लाल बुरांश के खिलने की हर्षित भावना को वक्त करता है।
बिस्सु या गनियात : यह' एक वसंत उत्सव है जो की अप्रैल महीने मे बैशाख की संक्रांति के दिन मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर ये संक्रांत के एक दो दिन बाद भी मनाया जाता है। ये त्यौहार भी और त्योहारो की तरह तीन या पांच दिवसीय होता है। यह त्यौहार लोगो में आगामी फसल कटाई तैयार करता है और उनमे जोश, ऊर्जा और शक्ति बहाल करता है। यह पर्व बर्फ से आच्छादित सफेद पृष्टभूमि पर लाल बुरांश के खिलने की हर्षित भावना को वक्त करता है।
ठाणे डांडे की गनियात का फोटो |
अन्य त्योहारो की तरह इस त्यौहार में भी सभी स्तानीय देवताओ के जश्न मानते है तथा उनकी पूजा रचना कर उन पर नवीन अंकुरित लालिमा युक्त बुरांश के फूलो का अर्पण करते है। लोग इस उत्सव को मनाने की तयारी में बहुत दिन पहले से ही तयारी करने लगते है। लोग घरो में रंगाई करते है , गोबर व सफेदी (गदिया- एक प्रकार का चुना जैसी मिटटी ) का लेप लगाकर घरों , छानी ( घर से दूर का अस्थाई आवास ) सूंदर व स्वच्छ बनाते है। इस त्यौहार में लोग नए कपड़ो की ख़रीदारी करते है और इस त्यौहार को पूर्ण स्वरुप देने के लिए हमेशा तैयार रहते है। लोगो के घर में पहले से ही पापड़ बनने शुरू हो जाते है। ये पापड़ खास किस्म के आते से बनाये जाते है जिसमें की गेंहू और मक्खा का कुछ निश्चित अनुपात होता है।
बिसु की शुरुवात संक्रांत के दिन के पहले दिन ही हो जाती है जिसे लोग लाग्दे के दिन के नाम से भी जानते है। लाग्दे के दूसरे दिन सुबह बाजगी द्वारा ढोल की थाप व रणसिंगे का उद्धगोष से संक्रान्त के दिन का संकेत मिल जाता है। गॉंव के सभी लोग सुबह चार बजे ही किसी पवित्र पानी के स्रोत पर जाकर पर्वी का स्नान क्र चुके होते है। ढोल की आवाज़ सुन कर सभी गांव के लोग आस पास के जंगलो से देव अर्चन व् घर की सजावट के लिए बुरांश के फूल लेने चले जाते है। गाँव से निकलते ही वे दूसरे गाँव के लोगो में सम्मिलित हो जाते है। अब ये ख़त ( गाँवो का समूह ) कहलाती है। लोग ढोल के साथ नाचते हुवे जांगले जाते है तथा बुरांश के फूलो की मालाएं व् गुच्छे बनाकर अपनी गांव की और लौटते है। फूलो लाने की इस यात्रा को "फूल्यात " कहते हैं। कई इलाको में इसी दिन ही बिस्सु पर्व मनाया जाते है और कई स्थानों पर एक दो दिन बाद में।
लोग फिर से ढोल की साथ गाते नाचते हुवे एक थात ( मैदान ) एकत्रित होते है। सभी लोग आपस में मिलते है और अपनी ख़ुशी जाहिर करते है। इस पुरे दिन लोग मनोरंजन में मसगुल रहते है। बहुत से स्थानों पर तीरंदाजी का खेल भी आयोजित किया जाता है है जंहा लोग पारंपरिक रूप से तीरंदाजी के पोषक पहन कर इसमें बढ़ चढ़कर हिसा लेते है। यह बस मनोरंजन के लिए किया 'है इसमें पुरुषो के पास मजबूत धनुष और तीर होते है तथा पैरो पर ऊनी मोज़े होते है जो की इस खेल का अनिवार्य है। दूर दराज से भी बहुत से लोग इस स्पर्धा में प्रतिभाग करते है। ये खेल अपने आप में एक उत्कृष्ट कृत्ये है। इस खेल में धनुधर सामने चाल दिक रहे निशाने के पैरो वाले हिस्से (जंहा उसने ऊनी मोज़े पहने हो )पर निशाना लगाता है। इस खेल को स्थानीय भाषा में "ठोवडे" कहते है।
विभिन्न बिस्सु मेले इस प्रकार है -
- ठाणे डांडे की गनियात - १६या १७ अप्रैल प्रतिवर्ष
- चुरानी गनियात - १६ या १७ अप्रैल प्रतिवर्ष
- लाखामंडल का विस्सू - १३ अप्रैल से १६ अप्रैल तक
- खुरुड़ी डांडा विस्सू - १४ अप्रैल
- कुवानू बिस्सु - १६ या १७ अप्रैल
- मोका बागी गनियात - १३ - १७ अप्रैल के मध्य मे
- कवासी का बिस्सु -१४ अप्रैल
- नगाया बिस्सु
- चोली डांडा बिस्सु ...... आदि
अन्य जगहों पर भी १३ से १७ अप्रैल के मध्य में बिस्सु मनाये जाते है।
बिस्सु त्यौहार में पारंपरिक नृत्ये