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बिस्सु या गनियात :हर्ष उल्लाश और खुशियो का त्यौहार

जौनसार बावर  में  आने वाली   संक्रांत  में मनाये  जाने  वाला  त्यौहार बिस्सु  की  तैयारी  जोरो  पर  है।  जानिए  क्या है विस्सू  और  गनियात -
बिस्सु या गनियात  : यह' एक वसंत  उत्सव है  जो की अप्रैल महीने मे  बैशाख  की संक्रांति  के दिन मनाया जाता है।  कुछ स्थानों  पर ये संक्रांत  के एक दो दिन बाद  भी मनाया जाता  है। ये  त्यौहार  भी  और त्योहारो  की तरह  तीन  या पांच  दिवसीय  होता है। यह  त्यौहार  लोगो में आगामी फसल  कटाई  तैयार  करता है  और उनमे जोश,  ऊर्जा और  शक्ति बहाल करता है। यह पर्व  बर्फ  से आच्छादित  सफेद  पृष्टभूमि  पर लाल  बुरांश  के खिलने की हर्षित  भावना  को वक्त  करता है।
ठाणे  डांडे  की गनियात  का फोटो 

अन्य त्योहारो की तरह इस त्यौहार में भी  सभी  स्तानीय  देवताओ के  जश्न  मानते है  तथा  उनकी पूजा रचना कर  उन पर नवीन अंकुरित  लालिमा युक्त बुरांश  के फूलो  का अर्पण  करते है।  लोग इस उत्सव को मनाने  की तयारी में बहुत दिन पहले से ही तयारी करने लगते है। लोग घरो में रंगाई करते  है , गोबर  व सफेदी  (गदिया- एक प्रकार का चुना  जैसी मिटटी  ) का लेप  लगाकर   घरों  , छानी ( घर से दूर का अस्थाई आवास ) सूंदर  व  स्वच्छ  बनाते है।  इस  त्यौहार  में लोग नए  कपड़ो की ख़रीदारी  करते है और  इस  त्यौहार को पूर्ण स्वरुप  देने  के  लिए  हमेशा  तैयार  रहते है।  लोगो  के घर में  पहले से ही पापड़  बनने शुरू हो जाते  है। ये पापड़ खास किस्म के आते से बनाये जाते है  जिसमें  की गेंहू  और मक्खा  का कुछ निश्चित  अनुपात होता है।



बिसु की शुरुवात  संक्रांत  के दिन के पहले दिन ही हो जाती  है जिसे लोग लाग्दे  के दिन के नाम से भी जानते है। लाग्दे  के दूसरे दिन सुबह  बाजगी द्वारा  ढोल की थाप  व  रणसिंगे का उद्धगोष से  संक्रान्त  के दिन का संकेत  मिल जाता है।  गॉंव  के सभी  लोग  सुबह चार बजे  ही  किसी  पवित्र पानी के स्रोत  पर जाकर  पर्वी  का स्नान क्र चुके होते है।  ढोल की आवाज़ सुन कर सभी गांव के लोग आस पास के जंगलो से देव अर्चन व् घर की सजावट  के लिए बुरांश  के फूल लेने चले जाते है।  गाँव  से निकलते ही  वे दूसरे गाँव  के लोगो में सम्मिलित  हो जाते है। अब ये ख़त ( गाँवो का समूह )  कहलाती है। लोग ढोल के साथ नाचते हुवे जांगले जाते है तथा बुरांश के फूलो की मालाएं व् गुच्छे बनाकर अपनी गांव की और लौटते है। फूलो लाने की इस यात्रा को "फूल्यात " कहते हैं।  कई   इलाको में इसी दिन ही बिस्सु पर्व  मनाया जाते है और कई  स्थानों  पर एक दो दिन बाद में।  

लोग  फिर से ढोल की साथ  गाते नाचते  हुवे एक थात ( मैदान ) एकत्रित  होते है।  सभी  लोग आपस में मिलते  है और अपनी ख़ुशी  जाहिर  करते है।  इस पुरे दिन लोग मनोरंजन में मसगुल  रहते है। बहुत  से स्थानों पर तीरंदाजी  का खेल भी आयोजित  किया जाता है  है जंहा लोग पारंपरिक  रूप से तीरंदाजी  के पोषक पहन कर इसमें बढ़ चढ़कर  हिसा लेते है। यह  बस मनोरंजन  के लिए किया 'है  इसमें पुरुषो के पास मजबूत धनुष और तीर होते है तथा  पैरो  पर ऊनी  मोज़े होते है जो की इस खेल का अनिवार्य है।  दूर दराज  से भी बहुत से लोग इस स्पर्धा में प्रतिभाग करते है। ये खेल अपने आप में एक उत्कृष्ट कृत्ये  है। इस खेल में धनुधर  सामने चाल  दिक रहे निशाने  के पैरो  वाले  हिस्से (जंहा उसने ऊनी  मोज़े  पहने हो )पर निशाना  लगाता  है। इस  खेल को स्थानीय  भाषा  में "ठोवडे" कहते  है।  

विभिन्न  बिस्सु मेले इस प्रकार है -

  1. ठाणे डांडे  की गनियात  - १६या १७ अप्रैल प्रतिवर्ष 
  2. चुरानी  गनियात - १६ या १७ अप्रैल प्रतिवर्ष 
  3. लाखामंडल  का विस्सू - १३ अप्रैल से १६ अप्रैल तक 
  4. खुरुड़ी डांडा  विस्सू - १४ अप्रैल 
  5. कुवानू बिस्सु - १६ या १७ अप्रैल 
  6. मोका बागी  गनियात - १३ - १७ अप्रैल के मध्य मे
  7. कवासी  का बिस्सु -१४ अप्रैल 
  8. नगाया  बिस्सु 
  9. चोली  डांडा  बिस्सु    ......  आदि 
अन्य  जगहों पर भी १३ से १७ अप्रैल  के मध्य में बिस्सु मनाये  जाते है।

बिस्सु त्यौहार  में पारंपरिक  नृत्ये 




उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ५७ सीटो पर विजय दर्ज

उत्तराखंड में  विधानसभा चुनाव  में बीजेपी  ने ५७ सीटो  पर  विजय  दर्ज  कर  बहुमत  हासिल  कर ली   है। मुख्यमंत्री हरीश रावत किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण सीट से हार चुके हैं और उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। राज्यपाल के.के पॉल ने उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया है। फिलहाल, हरीश रावत नए मुख्यमंत्री के शपथग्रहण तक मुख्यमंत्री कार्यवाहक के तौर पर काम करेंगे। बता दें कि एग्जिट पोल में भी भाजपा को उत्तराखंड में सबसे बड़ी पार्टी बताया गया था। उत्तराखंड के सीएम हरीश रावत ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में कहा कि राज्य में कांग्रेस बहुमत से सरकार बनने जा रही है। उन्होंने कहा, “मेरे मन में उत्साह भी है और आकांक्षा भी है। मैने भगवान से प्रार्थना की है कि जिस तरह मैने पिछले कार्यकाल में काम किया है इस बार उससे भी बेहतर करूं।” बता दें कि रावत ने घर पर पूजा का आयोजन कराया और काला टीका भी लगाया।
Result Source by : The Times Of India

यहां 15 फरवरी को 69 सीटों के लिए वोट डाले गये थे। जबकि एक सीट पर वोटिंग 9 मार्च को हुई। इस बार उत्तराखंड की जनता ने बंपर वोटिंग की और पिछले तीन बार के विधानसभा का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 70 फीसदी वोट डाले। इस बार सीएम हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा सीट से उम्मीदवार हैं, उन्होंने सूबे में 45 सीटें जीतने का दावा किया है। उत्तराखंड में कुल 35,78,995 महिला मतदाताओं समेत कुल 74,20,710 मतदाता हैं। 13 जिलों में फैली 70 विधानसभा सीटों पर 637 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा। थोड़ी ही देर में ये साफ हो जाएगा कि इन मतदाताओं ने किनके हक में अपना फैसला दिया है। उत्तराखंड में ज्यादातर सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है लेकिन करीब एक दर्जन सीटों पर बतौर निर्दलीय खड़े हो गये बागी अपनी पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।





भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड के 64 विधानसभा प्रत्याशियों की सूची जारी

भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड के 64 विधानसभा प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है।
उम्मीदवारों की पूरी ल‌िस्ट 

  • 1- पुरोला (SC) से मालचंद
  • 2- यमुनोत्री से केदार सिंह रावत
  • 3- गगोत्री से गोपाल रावत
  • 4- बदरीनाथ से महेंद्र भट्ट
  • 5- थराली (SC) से मगनलाल शाह
  • 6- कर्णप्रयाग से सुरेंद्र सिंह नेगी
  • 7- केदारनाथ से शैलारानी रावत
  • 8- रुद्रप्रयाग से भरत चौधरी
  • 9- घनसाली (SC) से शक्ति लाल शाह
  • 10- देवप्रयाग से विनोद कंडारी
  • 11- नरेंद्रनगर से सुबोध उनियाल
  • 12- प्रतापनगर से विजय सिंह पंवार
  • 13. टिहरी से धन सिंह नेगी
  • 14. धनौल्टी से नारायण सिंह राणा
  • 15. सहसपुर से सहदेव पुंडीर
  • 16. रायपुर से उमेश शर्मा 'काऊ'
  • 17. राजपुर रोड (SC) से खजानदास
  • 18. देहरादून कैंट से हरबंस कपूर
  • 19. मसूरी से गणेश जोशी
  • 20. डोईवाला से त्रिवेंद्र सिंह रावत
  • 21. ऋषिकेश से प्रेमचंद्र अग्रवाल
  • 22. हरिद्वार से मदन कौशिक
  • 23. बीएचईएल रानीपुर से आदेश चौहान
  • 24. ज्वालापुर (SC) से सुरेश राठौर
  • 25. भगवानपुर (SC) से सुबोध राकेश
  • 26. झबरेड़ा (SC) से देशराज कर्णवाल
  • 27. पिरानकलियर से जयभगवान सैनी
  • 28. रुड़की से प्रदीप बत्रा
  • 29. खानपुर से कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन
  • 30. मंगलौर से ऋषिपाल बलियान
  • 31. लक्सर से श्री संजय गुप्ता
  • 32. हरिद्वार ग्राणी से स्वामी यतीश्वारानंद
  • 33. यमकेश्वर से ऋ‌तु खंडूड़ी (बीसी खंडूड़ी की बेटी)
  • 34. पौड़ी (SC) से मुकेश कोली
  • 35. श्रीनगर से धन सिंह रावत
  • 36. चौबट्टाखाल से सतपाल महाराज
  • 37. लैंसडौन से दिलीप सिंह रावत
  • 38. कोटद्वार से हरक सिंह रावत
  • 39. धारचूला से वीरेंद्र सिंह पाल
  • 40. डीडीहाल से बिशन सिंह चुफाल
  • 41. पिथौरागढ़ से प्रकाश पंत
  • 42. गंगोलीहाट (SC) से मीना गंगोला
  • 43. कपकोट से बलवंत सिंह भौर्याल
  • 44. बागेश्वर (SC) से चंदन राम दास
  • 45. द्वाराहाट से महेश नेगी
  • 46. सल्ट से सुरेंद्र सिंह जीना
  • 47. रानीखेत से अजय भट्ट (प्रदेश अध्यक्ष)
  • 48. सोमेश्वर (SC) से रेखा आर्य
  • 49. अल्मोड़ा से रघुनाथ सिंह चौहान
  • 50. जागेश्वर से सुभाष पांडेय
  • 51. लोहाघाट से पूरन फर्त्याल
  • 52. चंपावत से कैलाश गहतोड़ी
  • 53. लालकुंआ से नवीन दुमका
  • 54. नैनीताल (SC) से संजीव आर्य
  • 55. कालाढूंगी से बंशीधर भगत
  • 56. जसपुर से शैलेंद्र मोहन सिंघल
  • 57. काशीपुर से हरभजन सिंह चीमा
  • 58. बाजपुर (SC) से यशपाल आर्य
  • 59. गदरपुर से अरविन्द पाण्डेय
  • 60. रुद्रपुर से राजकुमार ठुकराल
  • 61. किच्छा से राजेश शुक्ला
  • 62. सितारगंज से सौरभ बहुगुणा (विजय बहुगुणा के बेटे)
  • 63. नानकमत्ता से प्रेम सिंह राणा
  • 64. खटीमा से पुष्कर सिंह धामी
​अभी छह सीटों पर प्रत्याशियों का एलान होना बाकी है। गौरतलब है कि उत्तराखंड में विधानसभा की 70 सीटें हैं।








भारी मात्रा में सैलानियो के चलते चकराता में 4 किलोमीटर तक का जाम

सैलानियों चकराता की वादियों की दर्शन करने के लिए काफी मुस्किलो का सामना करना पड रहा है । हजारो की संख्या ने पहुंचे सैलानियों को 4 से 5 किलोमीटर का जाम झेलना पड़ रहा है ।
जाम   के चलते  पर्यटकों  को  ४ से  ५ किलोमीटर  तक  का पैदल  रास्ता  तय  कर  के  सदर  बाजार  पहुँच  रहे  है।  जँहा  पर्यटक  बर्फ  से लदी  वादिया  देख  खुश  है  वही  इस  तरह  की व्यवस्तता  के  चलते निराश  भी  है। 

सैलानियों  के  जाम  में फसे  वाहन 
जाम  जैसी  स्तिथि  देख  लोगो को  फिर  से गेट  प्रणाली  याद  आयी।  

बर्फ  से  ढकी  वादियो  का दीदार  करने  के  लिए  पहुंचते लोग 


जौनसार बावर वार्षिक महोत्सव २०१७ दिल्ली में संपन्न


जौनसार  बावर  वार्षिक  महोत्सव  २०१७  दिल्ली  में संपन्न आज  संपन्न हुवा।  इस महोत्सव  में पारम्परिक  गीत , हारुल ,नृत्य  आदि  प्रस्तुति  विभिन्न  कलाकारों  द्वारा  देखने को मिली। इस उपलक्ष्य  में बूलाड़  के महासू  देवता  की वेबसाइट  का भी सुभारम  भी  किया  गया। 

दिल्ली में आयोजित जौनसारी मेला २०१७ की विडियो | jaunsari fest delhi 2017 video

दिल्ली  में आयोजित  जौनसारी  मेला २०१७ की विडियो 


नए साल  के जश्न  में दिल्ली  में रहने  वाली  जौनसार  बावर   कर्मचारी  ने धूम धाम  से जौनसारी  मेला  मनाया।  इस मेला का आयोजन  प्रत्येक  वर्ष  १ जनवरी  को किया जाता  है।  इस  कार्येक्रम  में दिल्ली  वास  क्र रहे जौनसार  बावर  के कर्मचारी  गण  बढ़  चढ़  क्र हिस्सा लेता  है तथा  पारम्परिक  लोकगीतों  के साथ   नृत्य  करते है। ऊपर  विडियो  १ जनवरी २०१७ को  फिल्मायी  गयी है।


जौनसार बावर और पलायन

सुने हो रहे है गॉंव , बंजर हो  खलियान ,एक घोऱ  सन्नाटा  पसरा है  घर आँगन  में जँहा  कभी  बच्चो  की किलकारियां  और चहचाहट  सुनने  को मिलती थी ,खाली  हो गये  है  बैठक और ख़त्म हो  गये वो  ठिकाने  जंहा बुजुर्ग  लोग सुबह शाम बैठ  कर ठहाके  लगाते  थे।  चाह  विकास  की थी  लेकिन  उज्जड़  गए  है  जौनसार  का गॉंव समाज ,विकास की चाह  और बढती  बेरोजगारी  ने यँहा  के  युवाओ  को  गॉंव समाज  भूलकर  पलायन  के लिए एक नया  आयाम  दिया है। वो कुछ  इस तरह  इस  समस्या  से प्रभावित  हुवा है  की वह  इससे  बहार निकलना  ही नही  चाहता है। 
आधुनिकरण  ने जौनसार के  लोगो  इस तरह लाचार  बनाया है  की पहाड़ की कठिनाई  पूर्ण  जिंदगी   सामने  वो सरल पलायन  को गले  लगाता है।  पहाड़ की चुनोतियों  पूर्ण सफर  के  डर  से  वो उस मिट्टी  को भूल  जाना  पसंद करता है  जिसने  उसकी व  उसके  पूरकों  की कई  पीढ़ियों  को पला पोषा  है।  निर्मम  सोयी  पड़ी  है  मिट्टी बंजर  जंग  का बोझ ले के जो कभी  जीवन  रूपी  अनाज  उपजाति  थी  वो आज   घास  , भांग और नवनीकरण  आपदा  आये  मलवे  बोझ तले  धूप  में  तप  रही  है , बरसात  में भीग  रही  है और  ठण्ड  में ठिठुर  रही है। 

पलायन  की वजह  से गाँव  में घटती  आबादी  ने सबको जंजोर  के  रख  दिया है। गाँव  में लगते  ताले देख  बहुत  से लोग अकेलेपन के  भय  से ताले  लगाने को तैयार है। बच्चो  की उत्तम  शिक्षा  व  उनके  उज्जवल  भविष्य  और  अपने लिए सरल व  आरामदायक  रोजगार की चाह  में लोग इस तरह  गाँव  से विस्तापित  हो रहे हैकि  गाँव  में सनाटा सा पसर रहा है।  आज  के  इस  शिक्षित समाज और सरकार   इस उभरती  समस्या   वाकिफ  है।  लेकिन  इस समस्या  को  रोकने    कोई  कदम  नहीं  उठाया  गया। जौनसार बावर  शिक्षा , चिकित्सा  व अन्य  मुलभुत  सुविधा   अभाव  में  पलायन  रूपी  समस्या  में घिर  रहा है। 

उत्तप्रदेश  से विभाजित  होने  के बाद  जौनसार बावर  ही नहीं  बल्कि गढ़वाल  व कुमाऊं  के सभी  पहाड़ी  गाँवो  यही  हाल है। पलायन  की बढ़ती  इस समस्या  को कुछ जानकार  सरकार  व  कुछ  ख़ुद  को जिमेदार  ठहराते है। साथ ही साथ कई बार प्राकृतिक  आपदाओं के कारण कृषि पर इसका सीधा असर दिखाई दे रहा है इन सभी वजहों के कारण राज्य  का विकास भी प्रभावित  होता दिखाई  देता है। 

जौनसार  बावर  के  कोटि  कानासर  में विगत  अगस्त  माह में '' पलायन  एक  चिंतन '' नामक  कार्येक्रम  एक पहल  के  रूप  में आयोजित  किया गया था।  इस कार्येक्रम में  प्रदेश    राज्यसभा  सांसद  '' प्रदीप  टम्टा'' , मोहन सिंह रावत , प्रसिद्ध  जनकवि  , गीतकार  लोकगायक  ''नरेंद्र सिंह नेगी '' व गांववासियों  ने   पलायन जैसी समस्या पर अपने विचार  रखे। उनके मतानुसार  हमें  पलायन  जैसे  समस्या  के लिए सब्र के साथ  इस   चिंतन करने  की आवश्कता  है  हमें वैसे  सारे  तथ्य  और  दस्तावेज  इकट्टा  कर  के इस  समस्या  से निपटने  लिये  एक मास्टर  प्लान  बनाना  चाहिए। 
पलायन  का सीधा  असर  कृषि  पर  भी  पड  रहा  है भारत सरकार ने हाल ही में पंतनगर विवि से 1950 से लेकर अब तक कृषि की स्थिति से संबंधित एक रिपोर्ट मांगी थी। इसमें 2050 की आबादी का आकलन कर अनाज की आवश्यकता आदि की बाबत निष्कर्ष बताने को भी कहा गया था। विवि ने जो रिपोर्ट भेजी है उसके तथ्य चौंकाने वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार अभी पूरे देश में करीब 14 करोड़ हेक्टेयर खेतिहर जमीन है। बढ़ते शहरीकरण व खेती की जमीन का अन्य कामों में इस्तेमाल आदि के चलते 2050 तक लगभग दो करोड़ हेक्टेयर तक खेती योग्य जमीन कम हो जाएगी। इस हिसाब से एक दिन में 1,441 हेक्टेयर से ज्यादा उपजाऊ भूमि खत्म हो रही है। जबकि 2050 में आबादी बढ़कर एक अरब 70 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। इतनी आबादी के लिए सालाना 37 करोड़ टन अनाज की जरूरत होगी।

कृषि भूमि के लगातार सिकुड़ते जाने पर पंतनगर विवि की टीम ने गंभीर चेतावनी देते हुए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सीधे रिपोर्ट में कृषि भूमि के दूसरे कामों में इस्तेमाल को प्रतिबंधित करने की संस्तुति की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आबादी की आवश्यकता के अनुरूप अनाज जुटाने के लिए भविष्य में अपरंपरागत क्षेत्र मसलन पर्वतीय, रेगिस्तान और तटवर्ती इलाके की जमीनों को खेती योग्य बनाने के प्रयास करने होंगे। साथ ही मौजूदा खेती योग्य जमीन की उपज बढ़ानी होगी। बहुमंजिला इमारतों को बढ़ावा देना होगा। इसके अलावा राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान व्यवस्था भी और सशक्त बनानी होगी। अनुसंधान पर अधिक खर्च करना होगा। स्पष्टतः कृषि भूमि का अविवेकी दोहन भविष्य के लिए बड़े खतरे को जन्म देने वाला साबित होने वाला है।

यह विडंबना ही है कि जिस पंतनगर विश्वविद्यालय को कृषि योग्य भूमि की दशा-दिशा पर अध्ययन का भार सौंपा गया था उसकी ही कृषि योग्य भूमि कल-कारखानों के निर्माण के कारण आधी से भी कम रह गई है। विश्वविद्यालय की कृषि योग्य भूमि की ज्यादा खुर्द-बुर्द पिछले सात सालों में हुई है। ऊपर से जनपद में खेती की जमीन पर खुलेआम अवैध प्लॉटिंग हो रही है लेकिन शासन-प्रशासन अनजान बना हुआ है। उत्तराखंड की तराई की जमीन खेती के लिए सर्वोत्तम है। यहां का चावल विदेशों में भी भेजा जाता है। लेकिन अब पिछले कुछ सालों में तराई की लगभग 30 हजार एकड़ भूमि पर अनाज की जगह कंक्रीट की फसल उग रही है।


हमें और हमारी सरकार विशेषतः राज्य सरकार को लगातार हो रहे पलायन को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए| इसके लिए सर्वप्रथम गावों में उद्योग-धंधों की स्थापना करनी चाहिए| दूसरा कदम यहाँ पर उचित शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए| स्कूलों और कालेजों में मुख्य शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा को भी बढ़ावा देना चाहिए और समय- समय पर ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए जिसमें युवा वर्ग को स्वरोजगार के गुणों के बारे में बताया बताया जाय और स्वरोजगार अपनाने के लिए प्रेरित किया जाय| कृषि की स्थिति में सुधार के लिए खेतों की चकबंदी की जानी चाहिए और किसानों को अच्छे किस्म के बीज व खाद के अलावा ब्याजमुक्त ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि लोग कृषि को भी रोजगार के रूप में अपना सकें और इसके जरिये अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण भली-भांति कर सके और लगातार हो रहे पलायन पर ब्रेक लग सके

source :
  1. http://hindi.indiawaterportal.org/node/37733
  2. http://bedupako.com/blog/2012/03/29/why-do-youth-migrate-from-uttarakhand/#axzz4TdrmDVkQ
  3. http://hindi.indiawaterportal.org/node/54305


टिका राम शाह द्वारा लिखी जौनसार बावर ऐतिहासिक संदर्भ नामक पुस्तक का विमोचन

टिका  राम शाह  द्वारा  लिखी जौनसार बावर ऐतिहासिक संदर्भ नामक पुस्तक का विमोचन शनिवार को विधान सभा अध्यक्ष- गोविन्द सिंह कुंजवाल के द्वारा  उनके  देहरादून स्तिथ आवास में किया गया।
पुस्तक के लेखक टीकाराम शाह द्वारा लिखी गयी इस पुस्तक पर विगत कई वर्षो से शोधकार्य चल रहा था। पुस्तक का विमोचन करते हुए विधान सभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल ने कहा कि ऐसी पुस्तके हमारी लोक संस्कृति, ऐतिहासिक पृष्टभूमि के लिए दस्तावेज का कार्य करेगी।
इससे  पहले ये पुस्तक हिमाचल  के मुख्यमंत्री श्री वीर भद्र  सिंह ने ९ नवम्बर  को रेणुका  माता में  चल  रहे  विशाल  कार्येक्रम  में इस पुस्तक का विमो चन किया था।  वीर भद्र  सिंह  ने उनके  इस  योगदान  की भरपूर  सरहाना  की। 
उन्होंने जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र की लोक संस्कृति को उत्तराखण्ड की अमूल्य धरोहर मानते हुए कहा कि लेखक टीकाराम शाह जैसे अन्य कई और भी दस्तावेज संगृहित होने चाहिए ताकि हमें ज्ञात हो कि हमारी लोक संस्कृति की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि क्या है। उन्होंने  हिमांचल  और जौनसार बावर  के रीती  रिवाज़ों , देवी  देवताओ, व  भौगोलिक  सरंचना    को एक जैसी   मानते  हुये  ये पुस्तक में उससे  सम्बंदित  इतिहास   की भी  पुष्टि  की है। पुस्तक १६० रंगीन  व  १०६  साधे  सचित्रो के साथ  तत्यों  की प्रमाणिकता  उजागर  करते  है।  
वहीं लेखक टीकाराम शाह ने कहा कि इस पुस्तक से संदर्भित पाण्डुलिपियों साहित्य व तमाम वस्तुओं के लिए उन्हें कई वर्षो तक व्यापक शोध करना पड़ा ।इस  पुस्तक  का उनका उद्देश्य  हिमाचल  व् जौनसार बावर  की संस्कृति  स्वरुप  विरासत  को आमजन तक  पहुचाने  की  थी।  आज वे गदगद हैं कि उन्होंने अपने सपनों का साकार होते देखा है।
पुस्तक विमोचन करते टीकाराम  शाह  व् अन्य  गणमान्ये 
इस  पुस्तक विमोचन  पर  कई  स्थानियो  ने उनके काम को सरहाना करते  हुए कहा की  उन्होंने सांस्कृतिक  विरासत  को  संजोते  हुये  युवा पीढ़ी  को सोपने  का काम किया है। 
टीकाराम शाह जी के साथ जौनसार बावर के कई प्रबुद्ध व समाजसेवी लोग इस कार्यक्रम में उपस्थित थे। जिनमें महाराज कुमार, उदयप्रकाश, एस0एस0परमार, सुरेन्द्र कुमार, इन्द्र सिंह नेगी इत्यादि शामिल थे

पहाड़ी दिवाली - 2016


 जौनसार बावर और रंवाई  इलाके में कथित तौर पर दीपावली के ठीक एक महीना बाद  "पहाड़ी दीवाली " के रूप में दीपावली मनाई जाती है । गढ़वाल और उत्तरकाशी व टिहिरी के बहुत से पहाड़ी इलाके में कुछ ऐसी परम्परा देखने को मिलती है।
जुड़े पहन कर नाच  गाना  करना 

जब समुच्चै भारत में दीवाली का त्यौहार मनाया जाता है तब उत्तराखंड के देहरादून जिले के जौनसार बावर में सभी लोग अपनी निजी कार्य को निपटाने में व्यस्त रहते है ।लोग इस पर्व को बणियो की दीवाली या देशी दीवाली कहते है । उनके अनुसार उनकी दीवाली के लिए अभी एक माह शेष रह जाता है। लोग अपनी व्यस्तता के चलते हुवे सभी कामो को इस एक महीने में निपटाने में लगे रहते है ताकि वो बूढी या पहाड़ी दीवाली को सभी के साथ ख़ुशी ख़ुशी मना सके ।
होलियात  का एक मशालों  की यात्रा 

 ठीक एक महीने बाद मार्गशीस का महीना होता है । लोगो में एक नई उत्सुकता देखने को मिलती है।गॉंव सजने लगते है । आँगन भरने लगते है । छोटे छोटे बच्चे इस उत्सव की पूरी तैयारी में रहते है । व्यापर या जरुरी काम से बाहर गए लोग गॉंव में एकत्रित होने लगते है । माहौल कुछ पारपंरिक गीतों से शुरू होता है । देखते ही देखते ये अपनी चरम सिमा तक पहुंच जाता है ।
पारम्परिक नाच गाना 

जैसा की यह एक रौशनी का त्यौहार है तो इसकी शुरुवात भी कुछ इसी तरह होती है और पांच दिन के लंबी अवधि तक चलती है ।  अमावश से एक दिन पहले प्रत्येक घर में विमल की लकड़ी से मशाले बननी सुरु हो जाती है । इन्ही मशालों को जलाकर दीपावली का शुभ आरम्भ होता है । लोग जलती इन मशालों के साथ डोल दमाऊ की थाप पर गीत की धुन पर झुमते हूवे गॉंव की यात्रा करने निकल पड़ते है । इस यात्रा से उनका सन्देश जग जाहिर है की वे एकता व् अखंडता के साथ अपने गॉंव व् समाज को अन्धकार मुक्त करना चाहते है  ।स्थानिये लोगो की भाषा में इसे होलियात (मशालों की यात्रा) कहते है। इस यात्रा के समापन के बाद लोग सामूहिक आगँन में एकत्रित होकर गाते नाचते है। इस दिन के साथ ही वे अगले दिन का इंतजार करते है ।

दूसरा दिन अमावश की रात का होता है । यह दिन भी सभी दिनों को तरह उतना ही खाश होता है जितने की दूसरे । इस दिन विशेष पर लोग पूरी काली रात को सामूहिक आगँन में बैठ कर जगराता करते है साथ ही स्थानिये देवी देवताओ के गुणगान करते है। इस दिन का महत्व कोई समझे तो काफी गौण व शु सन्देश परक है। इस दिन से संकट या विकट समान काली रात के समय एक साथ सामना करना अपने आप में उत्कृष्टता व अखण्डता और आपसी भाइचारे को जग जाहिर करता है ।

दीवाली का तीसरे दिन लोगो में एक नया उन्माद देखने को मिलता है। दो दिन के शुरुवाती मनोरंजन बाद इस दिन पुरे गॉँव में ख़ुशी की एक नई लहर दौड़ने लगती है । अमावश की रात के जगराते के बाद लोग सुबह मशाले ले कर फिर से पुरे गॉँव का का चक्कर लगाते है । सभी लोग फिर जोश व जूनून के साथ इस फेरी में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है  । फेरी लगाने के बाद सभी लोग सामूहिक आँगन में एकत्रित होते है । लोग अख़रोट को भेट के रूप में देवता को चढाते है इस भेट पर अधिकार जताने और अखरोट को अपने हिस्से में या एकत्रित करने के लिए सभी लोग आतूर रहते है । सभी लोगो में ख़ुशी व मनोरंजन का सुरूर छाया रहता है । सुबह के इस रंगारंग माहौल को भक्तिमय बनाने के लिए बड़े बूढे देवता के भजन व उनकी अलौकिक शक्तियों का गुणगान करते है ।
शाम होते होते पुरे गॉँव अपने पारम्परिक वेशभूषा में तैयार हो के सामूहिक आगँन की और आने लगते है । इस शाम को मनाने के लिए लोग अपने अपने घर से अख़रोट  ले कर एक स्थान पर एकत्रित करते है। प्रत्येक परिवार से 100 -100 अखरोट परन्तु यदि किसी परिवार में कोई नया नवजात शिशु आया हो तो वह परिवार 200 अखरोट भेट स्वरूप एकत्रित करते है।  स्त्रियां घागरा चोली एवम् कुर्ती नामक परिधान पहन कर व पुरुष जुड़ा , चोडा नामक परिधान पहन कर आते हैं। पहले सभी लोग नाचते गाते है फिर विशेष व्यस्था से सभी लोग आँगन में बैठ जाते है। कुछ लोग एकत्रित अख़रोटों की एक ऊँची जगह से लोगो में बौछारे करते है लोग अपनी अपनी सुविधा से अख़रोट को उठाने के लिए टूट पड़ते है। इस समारोह के बाद फिर से नाच गाने का माहोल बन जाता है लोग देर रात तक नाचते गाते हैं।इस दिन को बिरुड़ी नाम से जाना जाता है ।

बिरुड़ी के अगला चौथा दिन जांदोइ का होता है इस दिन को लोग तीन दिन की तकावट से निजात पाने के लोग कुछ विशेष न कर के खान पान में मशगूल रहते है । 
अंतिम दिन को हाथी के दिन के नाम से भी जाना जाता है ।इस दिन रात के लिए लोग 20 फ़ीट ऊँचा लकड़ी का हाथीनुमा ढाँचा बनाकर सम्बंदित देवता को समर्पित करते है।किसी किसी गॉँव में हाथी के स्थान पर हिरण बनाया जाता है। गॉँव का मुखिया स्याणा इस देवता के इस चिन्ह रूपी वाहन पर तलवार के साथ आरूढ़ हो कर नृतय कर देवता को प्रसन्न करने की एक रस्म को पूर्ण करता है ।
हाथी  का एक फोटो 


 इन्ही  कुछ खास  दिनों  को मिलाकर  एक पहाड़ी  दिवाली अपने  पूर्ण  स्वरुप को प्राप्त करती है। पहाड़ी  दिवाली  को एक मास  बाद  मानाने के  कोई साक्षात  लिखित  तथ्य  नहीं है।  परंतु  कुछ दन्त  कथाये  जो की स्थानीय  लोगो  द्वारा सुनी  जाती है  के कुछ  अंश  बिंदु के रूप में नीचे लिखे  है
हाथी  पर  आरूढ़  होते  अस्वार 



  • कुछ लोगों का कहना है कि लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त कर रामचन्द्रजी कार्तिक महीने की अमावस्या को अयोध्या लौटे थे और इस खुशी में वहाँ दीपावली मनाई गई थी, लेकिन यह समाचार इन दूरस्थ क्षेत्रों में देर से पहुँचा इसलिए अमावस्या को ही केंद्र बिंदु मानकर ठीक एक महीने बाद दीपोत्सव मनाया जाता है।

  • एक अन्य प्रचलित कहानी के अनुसार एक समय टिहरी नरेश से किसी आदमी ने वीर माधोसिंह भंडारी की झूठी शिकायत की थी, जिस पर भंडारी को तत्काल दरबार में हाजिर होने का आदेश दिया गया। उस दिन कार्तिक मास की दीपावली थी।

  • रियासत के लोगों ने अपने प्रिय नेता को त्योहार के अवसर पर राज दरबार में बुलाए जाने के कारण दीपावली नहीं मनाई और इसके एक महीने बाद भंडारी के वापस लौटने पर अगहन के महीने में अमावस्या के दिन दीपावली मनाई गई।

  • ऐसा भी कहा जाता है किसी समय जौनसार-बावर क्षेत्र में सामूशाह नामक राक्षस का राज था जो बहुत निर्दयी तथा निरंकुश था। उसके अत्याचार से क्षेत्रीय जनता का जीना दूभर हो गया था। तब पूरे क्षेत्र की जनता ने अपने ईष्ट महासू देवता से उसके आतंक से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। महासू देवता ने लोगों की करुण पुकार सुनकर सामूशाह का अंत किया। उसी खुशी में यह त्योहार मनाया जाता है। 

  • शिवपुराण एवं लिंग पुराण की एक कथानुसार एक समय प्रजापति ब्रह्मा और सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर आपस में द्वंद्व होने लगा और वे एक दूसरे के वध के लिए तैयार हो गए। इससे सभी देवी-देवता व्याकुल हो उठे और उन्होंने देवाधिदेव शिवजी से प्रार्थना की

  • शिवजी उनकी प्रार्थना सुनकर विवाद स्थल पर ज्योतिर्लिंग (महाग्नि स्तंभ) के रूप में दोनों के बीच खडे़ हो गए। उस समय आकाशवाणी हुई की तुम दोनों में से जो इस ज्योतिर्लिंग के आदि और अंत का पता लगा लेगा वही श्रेष्ठ होगा

  • ब्रह्माजी ऊपर को उडे़ और विष्णुजी नीचे की ओर। कई सालों तक वे दोनों खोज करते रहे, लेकिन अंत में जहाँ से खोज में निकले थे वहीं पहुँच गए। तब दोनों देवताओं ने माना कि कोई हमसे भी श्रेष्ठ (बड़ा) है। जिस कारण दोनों उस ज्योतिर्मय स्तंभ को श्रेष्ठ मानने लगे। 

  • यहाँ महाभारत में वर्णित पांडवों का विशेष प्रभाव है। कुछ लोगों का कहना है कि कार्तिक मास की अमावस्या के समय भीम कहीं युद्ध में बाहर गए थे, इस कारण वहाँ दीपावली नहीं मनाई गई। जब वे युद्ध जीतकर आए तो खुशी में ठीक एक महीने के बाद दीपावली मनाई गई और यही परंपरा बन गई।